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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/६६

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अनासक्तियोग २, टिप्पती--इंद्रियोंमें काम व्याप्त होनेपर मन मलिन होता है, उससे विवेकशक्ति मंद पड़ती है, उससे ज्ञानका नाश होता है (देखो अध्याय श्लोक ६२-६४) तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ । पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ॥४१॥ हे भरतर्षभ ! इसलिए तू पहले तो इंद्रियोंको नियममें रखकर ज्ञान और अनुभवका नाश करनेवाले इस पापीका त्याग अवश्य कर । ४१ इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मनः । मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे. परतस्तु सः ॥४२॥ इंद्रियां सूक्ष्म हैं, उनसे अधिक सूक्ष्म मन है, उससे अधिक सूक्ष्म बुद्धि है । जो बुद्धिसे भी अत्यंत सूक्ष्म है वह आत्मा है। ४२ टिप्पणी--तात्पर्य यह कि यदि इंद्रियां वशमें रहें तो सूक्ष्म कामको जीतना सहज हो जाय । एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना । जहि शत्रु महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥४३॥ इस प्रकार बुद्धिसे परे आत्माको पहचानकर और आत्माद्वारा मनको वश करके हे महाबाहो ! कामरूप दुर्जय शत्रुका संहार कर। ४३