पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/६८

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अनासक्तियोग एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्ट: परंतप ॥२॥ इस प्रकार परंपरासे प्राप्त, राजषियोंका जाना हुआ वह योग दीर्घकालके बलसे नष्ट हो गया । २ स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्त: पुरातनः । भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् ।। ३ ।। वही पुरातन योग मैंने आज तुझसे कहा है। कारण, तू मेरा भक्त है और यह योग उत्तम मर्मकी बात है। ३ अर्जुन उवाच अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः । कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ।। ४ ।। अर्जुन बोले- आपका जन्म तो अभी हुआ है, विवस्वानका पहले हो चुका है । तब मैं कैसे जानें कि आपने वह (योग) पहले कहा था ? श्रीभगवानुवाच बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन । तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप ॥५॥ ४