चौवा प्रम्बायशानकर्मसंन्यासयोग ५७ राग, भय और क्रोधसे रहित हुए, मेरा ही ध्यान धरते हुए, मेरा ही आश्रय लेनेवाले ज्ञानरूपी तपसे पवित्र हुए बहुतोंने मेरे स्वरूपको पाया है। ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥११॥ जो जिस प्रकार मेरा आश्रय लेते हैं, उस प्रकार मैं उन्हें फल देता हूं। चाहे जिस तरह भी हो, हे पार्थ ! मनुष्य मेरे मार्गका अनुसरण करते हैं-मेरे शासनमें रहते हैं। ११ टिप्पनी--तात्पर्य, कोई ईश्वरी नियमका उल्लं- धन नहीं कर सकता। जैसा बोता है वैसा काटता है; जैसा करता है वैसा भरता है। ईश्वरी कानूनमें-- कर्मके नियममें अपवाद नहीं है। सबको समान अर्थात् अपनी योग्यताके अनुसार न्याय मिलता है। काडक्षन्तः कर्मणां सिद्धि यजन्त इह देवताः । क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा ॥१२॥ कर्मकी सिद्धि चाहनेवाले इस लोकमें देवताओंको पूजते हैं। इससे उन्हें कर्मजनित फल तुरंत मनुष्य- लोकमें ही मिल जाता है। १२ टिप्पनी--देवतासे मतलब स्वर्गमें रहनेवाले इंद्र- वरुणादि व्यक्तियोंसे नहीं है। देवताका अर्थ है
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