पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
मा

मेरा जीवन और प्राण तुम्हारे प्राणों का एक कण था। उसे पाकर मैंने अपना निर्माण किया। तुमने रक्त से रक्त दिया और शरीर से शरीर वह चिर काल तक तुम्हारे सुन्दर शरीर मे एक अप्रतिम धरोहर की भॉति धरा, रहा, और अन्त, मे तुम उसे अनायास ही छोड़ कर चली गई मेरी मा॥