पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/९०

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को तौफीक है? ऐसा कोई है? बादशाहों की पूंछ में क्या सुर्खाब के पर लगे रहते है? मैं किस बात मे कम हूॅ? जहाॅ जाता हूँ लोग झुक कर सलाम करते हैं और जाने की जरूरत भी नहीं पड़ती, लोग यहीं सलाम करने आते हैं। मेला लगा रहता है। मैं किस साले के दरवाजे जाऊॅगा? इन्हीं को रोटियाॅ लगी है, सो जहर के सारे दॉत तोड़े देता हूॅ। देखो मेरे हतकडे।

लोग कहते है भगवान् से डर। वेवकूफ इसी डर ही डर भुक्खड़ बने बैठे है। छोटे बड़े सब तरह के काम किये, आज तक तो भगवान् ने हाथ पकड़ा नहीं! तेरी भक्ति की दुम मे रस्सा। वे आते है पण्डित जी, पूरे बेगैरत, बिना पूछे सौ सौ असीसें देते है। चेहरा ऐसा जैसे अभी रो पड़ेंगे। शरीर ऐसा जैसे कब्र से उठ कर आये है। कौड़ी को दॉत से उठाते हैं। ये है भगवान् के भगत! उल्लू के पट्ठे, हरामी, खाते है मेरा, कहते है भगवान्का । अच्छा सब मौकूफ। इन निंकम्मों को आज से कौड़ी न दी जाय। भगवान् से मॉगें! उनका भगवान्दे खे कैसे खिलाता है। कहीं भगवान् न भगवान् की दुम। पद्दू का पद्मसिंह बना रखा है। हम है भगवान्! यह

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