पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१२४

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७ अप्सरा की सड़क की तरफ देख रही थीं। कोलाहल, कौतुक-पूर्ण हास्य तथा वार्तालाप के अशिष्ट शब्द सुन पड़ते थे। ___ राजकुमार ने उठकर देखा, वराल में चंदन सो रहा था। एक पलँग और बिछा था। कोई चट्टर से सर से पैर तक ढके हुए सो रहा था। चंदन को देखकर चिंता की तमाम गाँठे आनंद के मरोर से खुल गई । जगाकर उससे अनेक बातें पूछने के लिये इच्छात्रों के रंगीन उत्स रोएँ-राएँ से फूट पड़े। उठकर बहू के पास जाकर पूछा ये कब आए ? जगा दें ?" "बातें इस तरह करो कि बाहर किसी के कान में आवाज न पड़े, . और जरूरत पड़ने पर तुम्हें साड़ी पहनकर रहना होगा।" राजकुमार जल गया-क्यों.? "बड़ी नाजुक हालत है, फिर तुम्हें सब मालूम हो जायगा।" “पर मैं साड़ी नहीं पहन सकता। अभी से कहे देता हूँ।" "अर्जुन तो साल-भर विराट के यहाँ साड़ी पहनकर नाचते रहे, तुमको क्या हो गया ?" "वह उस वक्त नपुंसक थे।" "और इस वक्त, तुम | उससे पीछा छुड़ाकर नहीं भरो ?" राजकुमार लजित प्रसन्नता से प्रसंग से टल गया। पूछा-यह कौन हैं, जो पलंग पर पड़े हैं ? "मुह खोलकर देखो।" "नाम ही से पता चल जाया। "हमें नाम से काम ज्यादा पसंद है।" "अगर कोई अजान आदमी हो?" "तो जान-पहचान हो जायगी।" • "सो रहे हैं, नाराज होंगे। "कुछ बकझक लेंगे, पर जहाँ तक अनुमान है, जीत नहीं सकते।" . "कोई रिश्तेदार हैं शायद ?"