पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१४५

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द्वितीय कोशस्थान : चत्त २ सवितर्कविचारत्वात् कुशले कामचेतसि । द्वाविंशतिश्चैतसिकाः कौकृत्यमधिकं क्वचित् ॥२८॥ प्रत्येक प्रकार के प्रत्येक चित्त के साथ, कुशल, अकुशल, अव्याकृत चित्त के साथ, कितने चैत्त अवश्य उत्पन्न होते हैं ? [१६६] २८. कुशल कामचित्त में सदा २२ चैतसिक होते हैं क्योंकि यह सवितर्क सविचार होता है। कभी कौकृत्य अधिक होता है।' कामावचर चित्त पंचविध है :(१)कुशल चित्त एक है; (२-३)अकुशल द्विविध है यह आवेणिको है अर्थात् अविद्यामात्र से संप्रयुक्त है और रागादि अन्य क्लेश से संप्रयुक्त है; (४-५) अव्याकृत चित्त भी द्विविध है--निवृताव्याकृत अर्थात् सत्कायदृष्टि और अन्तग्राहदृष्टि (५.३) से संप्रयुक्त और अनिवृताव्याकृत अर्थात् विपाकजादि (१.३७, २.७१)। कामावचर चित्त सदा सवितर्क सविचार (२.३३ ए-वी) होता है । इस चित्त में जब यह कुशल होता है २२ चैत्त होते हैं:१० महाभूमिक,१० कुशलमहाभूमिक और दो अनियत अर्थात् वितर्क और विचार। जब कुशल चित्त में कौकृत्य होता है तब पूर्ण संख्या २३ होती है। कौकृत्य आख्या का क्या अर्थ है ? [१६७] कोकृत्य का शब्दार्थ कुकृतभाव है किन्तु यहाँ कौकृत्य से एक चैतसिक धर्म का बोध होता है। जिसका मालम्बन कोकृत्य अर्थात् कुकृतसम्बन्धी चित्त का विप्रतिसार है। यया विमोक्षमुख जिसका आलम्बन शून्यता या नैरात्म्य है, शून्यता कहलाताहै (८.२४-२५) : यथा अलोभ जिसका आलम्बन अशुभा (६.२सी-डी) है, अशुभा कहलाता है । यथा लोक में कहते हैं कि सर्वनाम सर्वदेश, सर्वलोक आया है। इस प्रकार स्थान (आश्रय) से स्थानियों (आभयो) का अतिदेश होता है । कोकृत्य विप्रतिसार का स्थानभूत है अतः विप्रतिसार के लिए कांकृत्य का निर्देश युक्त है। क्योंकि फल में हेतु का उपचार होता है यया इस वचन में "यह ६ स्पर्शायतन पौराण कम है।' ३ महाभूमिक नहीं हैं क्योंकि यह सर्वचित्त में नहीं पाये जाते । यह कुशलमहाभूमिक नहीं हैं क्योंकि इनका कुशलत्य से अयोग है। यह क्लेशमहाभूमिक नहीं है क्योंकि सर्वन क्लिप्ट में इनका अभाव है : क्योंकि सप्रतिष चित्त में राग नहीं होता। आचार्य वसुमित्र का यह संग्रह श्लोक है: "स्मृत है कि आठ अनियत हैं अर्थात् वितर्क, विचार, कोकृत्य, मिद्ध, प्रतिध, सक्ति (राग), मान, विचिकित्सा।" किन्तु हम इस अष्ट अनियत- वचन को नहीं समझते । दृष्टियों को (५.३ ए) भी क्यों अनियत नहीं मानते ? सप्रतिघ या सविचिकित्स चित्त में मिथ्यादृष्टि प्रवर्तित नहीं होती। १ सवितर्कविचारत्वात् कुशले कामचेतत्ति । द्वाविंशतिश्चतसिकाः कोकृत्यमधिकं क्वचित् ।। कथावत्शु, १४.८ से तुलना कीजिये। 3 धम्मसंगणि, ११६१, अत्यसालिनी, ७८४-७८७. १.३७ से तुलना कीजिये। २ १