पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१६७

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द्वितीय कोशस्थान :चित्त-विप्रयुक्त ४१ ए. सभागता वह है जिसके योग से सत्वों का साम्य होता है । [१९६] १. सभागता नाम का एक द्रव्य है, एक धर्म हूँ जिसके योग से सत्व तथा सत्व- संख्यात धर्मो (१.१०) का परस्पर सादृश्य (सभाग, सम, समान, सदृश) होता है । (विभाषा, २७, ४)। २. शास्त्र में (ज्ञानप्रस्थानादि) इस द्रव्य की निकायसभाग संज्ञा है : आचार्य श्लोकवन्ध के कारण सभागता संज्ञा का प्रयोग करते हैं। ३. सभागता दो प्रकार की है-अभिन्न और भिन्न । प्रथम सभागता सर्वसत्ववर्तिनी है : उसके योग से प्रत्येक सत्व का सब सत्त्रों के साथ सादृश्य होता है । उसे सत्वसभागता कहते हैं। द्वितीय में अनेक अवान्तर भेद हैं : इन प्रभेदों में से प्रत्येक केवल कुछ सत्वों में पाया जाता है ।-सत्व धातु, भूमि, गलि (३.४}, योनि (३.९}, जाति (ब्राह्मणादि), व्यंजने, उपा- सकत्व (४.१४), भिक्षुता, शैक्षत्व, अर्हत्व आदि के अनुसार भिन्न होते हैं । इतनी ही सभा- गता होती हैं जिनके योग से एक विशेष प्रकार का प्रत्येक सत्व उस प्रकार के सत्वों के सदृश होता है। ४. पुनः सत्वसंख्यात धर्मों के लिये एक सभागता है : धर्मसभागता । यह स्कन्ध-आयतन- धातुतः है : स्कन्धसभागता आदि, रूपस्कन्धसभागता आदि । ५. सभागता (सत्वसभागता) नामक अविशिष्ट द्रव्य के अभाव में अन्योन्यविशेषभिन्न सत्वों के लिये सत्यादि अभेद बुद्धि और प्रज्ञप्ति कैसे होंगी? इसी प्रकार धर्मसभागता के योग से ही स्कन्ध, धातु आदिबुद्धि और प्रज्ञप्तियुक्त है। [१९७] ६ . क्या सत्वसभागता (मनुष्यत्व आदि) का परित्याग और प्रतिलाभ किये विना गतिसंचार, च्युति-उपपत्ति होती है ?-चार कोटि हैं : १. एक स्थान से च्युत होना (यथा कामधातु से)और उसी स्थान में उपपद्यमान होना : गतिसंचार के होने पर भी सभागता उसी अवस्था में रहती है। वह सत्वसभागता का न त्याग करता है, न प्रतिलाभ करता है। २. नियमावक्रान्ति (६.२६ ए) में प्रवेश करना : गतिसंचार के विना पृथग्जनत्व- स्वभाव को सभागता का त्याग और आर्यत्व-स्वभाव की अपर सभागता (आर्य-सभागता) ३ प्रत्येक सत्व में अन्य अन्य होते हुए भी सत्वसभागता अभिन्न कहलाती है क्योंकि सादृश्य है। उसको एक और नित्य मानना वैशेषिकों को भूल है। १ 'आदि' से उपासिका, भिक्षुणी, नवशक्षनाशैक्ष आदि का ग्रहण होता है। व्या० १५७. १६] २ दो पाठ हैं : एवं स्कन्वादिबुद्धिप्रज्ञप्तयोऽपि योज्याः [च्या०,१५७.१९] और एवं धात्वादि- बुद्धिप्रज्ञप्तयोऽपि योज्याः : "धर्मसभागता के कारण धातु कामधातु के होते हैं.. च्या० १५७.२१] 11