पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/४००

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३९२ अभिधर्मकोश स्थान कुमुदपद्मवत् पुष्पों के विकास और संकोच से, पक्षियों के कूजन और अकूजन' से, मिद्धापगम और मिद्धोपगम से होता है। दूसरी ओर देव स्वयं प्रभास्वर होते हैं। रूपवातु और आरूप्यधातु के देवों के सम्बन्ध में : ८० बी-८१ डी. रूपावचर देवों का अहोरात्र नहीं होता। उनकी आयु की गणना कल्पों में होती है और कल्पसंख्या स्वाश्रय प्रमाण से नियत की जाती है। आरूप्य में २०००० कल्पों की आयु होती है। यह उतनी ही अधिकाधिक होती जाती है।--परीताभ से ऊर्ध्व यह कल्प महाकल्प हो जाते हैं, उससे अधः अर्थ। [१७४] जिन रूपावचर देवों का शरीर-प्रमाण अर्ध-योजन है अर्थात् जो ब्रह्मकायिक हैं उनकी आयु अर्बकल्प की है। इसी प्रकार यावत् अकनिष्ठ जिनका शरीर-प्रमाण १६००० योजन है और जिनकी आयु १६००० कल्प है। आकाशानन्त्यायतन में आयु २०००० कल्प की होती है। विज्ञानानन्त्यायतन में ४००००, आकिंचन्यायतन में ६००००, नैवसंज्ञानासंज्ञायतन या भवान में ८०००० । किन्तु कौन कल्प इष्ट है ? अन्तरकल्प, संवर्तकल्प, विवर्तकल्प या महाकल्प (३.८६ डी) ? परीताभों से आरम्भ कर (द्वितीय ध्यान के अधर देव) और उनको सम्मिलित कर महा- कल्प अभिप्रेत है। उससे नीचे (ब्रह्मपारिपद्य, ब्रह्मपुरोहित, महाब्रह्म) महाकल्प का अर्ध इष्ट है। वास्तव में ३० अन्तरकल्पों में लोक का विवंत होता है (महाब्रह्मा आरम्भ से ही होते हैं। पश्चात् २० अन्तर-कल्प तक लोक की अवस्थिति होती है। पश्चात् २० अन्तरकल्पों में लोक का संवतं होता है ( महाब्रह्मा अन्त में अन्तहित होते हैं)। अतः महाब्रह्मा की आयु ६० अन्तर- ' यह कुमुदायहनि संकुचन्ति रात्रौ विकसन्ति । पद्मानि तु विपर्ययेण । तथा तत्र केषा- ञ्चिदेव पुष्पाणां संकोचादहनि च विकासादहोरात्रव्यवस्थानम् शकुनीनां च कूजनात् । अकूजनाद् रात्रिः फूजनात् प्रभातम् । विपर्ययेण वा यथाशकुनजाति । मिद्धापगमोपगमाच्च वसुबन्धु के मूलस्रोत के बहुत समीप दिव्य, २७९ है : कथं रानियते दिवसो था । देव- पुष्पाणां संकोचविकासान् मणीनां ज्वलनाज्वलनाच्छकुनीनां च कूजनाकूजनात् । नास्त्यहोरात्रमायुस्तु कल्पः स्वाश्रयसस्मितः ॥८०॥ आरूप्ये विशतिः कल्पसहस्राण्यधिकाधिकम् । महाकल्प परीत्ताभात् प्रभृत्यर्वमधस्ततः ॥८॥ बील, केटीना, ८३ में कोश का बाद। अंगुत्तर, १. २६७ : प्रथम तीन आरूप्य देवों की आयु २००००, ४००००, ६०००० कल्प की है। चतुर्थ आरूप्य का उल्लेख नहीं है। विभंग, ४२४ : ब्रह्मपारिसज्ज, (या) कप की आयु, ब्रह्मपुरोहित, । महाब्रह्म, १परीत्ताभ, २, अग्यमाणाभ, ४. । तृतीय ध्यान के ऊर्ध्व देव सुभकिण्हों की आयु ६४ कप्प को है। चतुर्थ ध्यान के ६ विभाग हैं अर्थात् नेहप्पलों के साथ असञ्जसत्त, ५०० कम्प और पांच प्रकार के शुद्धावासिक, १०००, २०००, ४०००, ८००० और १६००० कप्प (अकनिट्ठ) आरूप्य, यथा कोश में। ब्रह्मकायिकों का आयुः प्रमाण एक कप्प है' इस वाक्य में आये हुये कप्प' का अर्थ बुद्धघोस 'रुप्प का भाग' लेते हैं, कथावत्यु, ११. ५ को अर्थकया। २ रूपिणां पुनः।