.१०० अमर अमिलापा . होने लगी। छदामों ने गुलामो को एक ओर लेजाकर कहा- "तुमने कुछ देखा भी?" "क्या हुआ ?" "चम्पा की संगिनी देखी?" "कौन है ?" गुलायो ने अनजान की तरह पूछा। छदामो ने अनखाकर कहा-"वेरा सिर! नयनारायण की धीरांड थी-भगो" अव तो गुलाबो को मानो बिच्छू उस गया। उसने गेड़ी पर हाय रखकर कहा-"ए-भग्गो ! इस गठ से १ वस, श्रव कुछ कसर ना रही। रांड का यह वठ!" छदामो ने मुँह विचकाफर कहा- "कलयुग है-कलयुग, बहू ! इस कलयुग में किसी की मर- जाद थोड़े ही रही है।" क्षण भर में एय बदल गया । बहू के चारों ओर जो जमघट इकठा था-सव भगवती को देखने मा जुटा । सब को यह लालसा हुई, देखें तो कलियुग की रॉड का कैसा ठाट-बाट है । भगवती ने देखा, उसके चारों ओर उठ जुड़ पदाहै। सभी उसे देखकर गेड़ी पर उँगली रखकर अचरब कर रहीं हैं। कोई आपस में इशारा कर रही है, कोई बोली कस रही है। भगवती घबराकर उठी। उसने चम्पा से धीरे से कहा- "चम्पा, मैं जो घर नाची हूँ, तू यहाँ व्हरी रह !" चम्पा ने उसका हाथ पकड़कर कहा-"बहू को देखकर हम भी चलेंगे, हमें क्या यहीं घर बसाना है" .
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