अमर अभिलापा की गई। जिन्हें रोकना होता, उनकी तरफ़ पुलीस से संकेत करके वे भागे बढ़ाते। चालीस-पचास आदमी इस प्रकार पुलीस के पल्ले में पहुंच गये । उनमें भी कुछ पूला कर-करके फिर गाड़ी में लौट रहे थे। डॉक्टरों का दल चावू साहब डब्बे के सामने पहुँचा। चे सोये पड़े थे। टिकट-कलक्टर ने डब्बे में घुसकर कहा-"पाप कहाँ जायेंगे बाबू ?" कुमुद ने कहा-"उन्हें न लगाइये, उनकी तबीयत ठीक नहीं है।" "थाप कहाँ से भारही है ?" "रामपुर से।" "वहाँ नो प्लेग है। बाबू की क्या हुआ है ?" डॉक्टर ने गाड़ी में घुमते-घुसते कहा। वात-चीत सुनकर बाबू साहव जाग चुके थे। उन्होंने कहा- "और कुछ नहीं, मकान से जरा तबीयत सुस्त होगई थी, मैं समझता हूँ, जरा सोने से ठीक होनायगी।" डॉक्टर ने थर्मामीटर लगाकर कहा-"साहब, आपको वावू साहव और कुमुद, दोनों पर वन गिरा! डॉक्टर ने कहा-"आपको आराम होने तक यहाँ ठहरना पड़ेगा।" "यह तो असम्भव है।" "प्रापका भागे जाना और भी असम्भव है।"
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