१५९ उपन्यास ठीक है युवक महाशय ! उपका वश चलेगा तो वह मर नायेगी। पर, मैं यह पूछता हूँ, कि इम पाप-पथ पर पड़ने का -सव अपराध उसी का है ? इतना कोर दण्ड ! ऐसा अमानुपिक स्यवहार ! ऐसी राक्षसी मार नो तुमने उसको दी है-उस्का अपराध क्या ऐसा था? उसमें तुम्हाग, तुम्हारे बाप का, तुम्हारे परिवार का, तुम्हारी नाति का थोर तुम्हारे धर्म का कुछ मी अपराध नहीं है ? निल प्रकार मोरी और नायदान में घर-मर की सारी गन्दगी डालकर घर को स्वच्छ रखते हैं-हिन्दू-धर्म में इसी प्रकार स्त्रियाँ भी सब के पाप को अपने सिर घोड़े रहती हैं। इससे उनका परलोक तो नष्ट होता ही है-इस लोक में भी भगवती की तरह दलित होती हैं । अच्छा है चलो, पुरुष तो 'निष्कलङ्क और स्वच्छ दूध-धोये रहते हैं। श्रानो पाठक ! हम सब इस पवित्र हिन्दू-धर्म का गुणगान करें, और इस दया धाम-धर्म को धन्यवाद दे लें। चौवीसवाँ परिच्छेद उपरोक्त घटना यद्यपि चुपचाप ही हुई थी, भगवती न तो रोई, न चिल्लाई न उसके मुंह से कोई शब्द ही निकला । फिर भी उस छोटे-से घर में वह घटना छिपी न रही। निस समय बालिका भगवती धरती पर मूदित पड़ी हुई थी, और हरनारायण क्रोध में भाग-बबूला होकर अनाप-शनाप बक रहे थे, उसी समय
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