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पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/१७

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पहला परिच्छेद 7 , छोटा-सा गाँव, रात का सन्नाटा, ग्रीष्म की रात, मधर और पिस्सुयों ने लोगों को रात-भर सोने नहीं दिया था। गर्मी भी कम न थी। हवा बन्द थी । श्रय टूटती रात उन्हें कुछ झपकी भाई थी, कि एक हृदयवेधी चीत्कार से उनकी नींद टूट गई। बौपाल पर नो दो-चार व्यक्ति सो रहे थे, वे उठकर बैठ गए । एक ने कहा-"मालूम होता है, रमाकान्त का लड़का चल बसा! गज़ब होगया, पहाद टूट पड़ा! थासार तो कल ही से अच्छे न ये। रमाफान्द भय न जीएगा। पधा, सुम क्या भभी सो ही रे हो?" दूसरे व्यक्ति ने करवट बदली, और फिर उटकर बैठ गया। उसने कहा-"भान सोना मिला कहाँ ? चलो, फिर उसके पर चले इमसे तो देखा भी नहीं नायगा । अभी वो न्याह काकाना भी नहीं खुला ईरवर की मनी है।" सभी उठ खड़े हुए। और भी दो बार व्यक्ति घरों से निकल भाए। इस बीच में कई स्वर क्रन्दन कर रहे थे। लोगों ने देखा,