उपन्यास सुनने ही योग्य होती थी । पर किसी-किसी का कथन था, कि जब उनका सम्बन्ध छदम्मोलान से था, तो उन्होंने सब कुछ खाया-पिया था । भोला का तो यहाँ तक कहना है, कि पाँडेनी को अपनी आँखों से हमने बोतल लिए छदम्मो के घर जाते देखा है। और मछली तो उसने स्वयं कई बार उन्हें वेची है । अपची आयु में उन्होंने तीन बार व्याह किया, पर न जाने क्या दैव-कोप था--किसी का सुख इन्हें बदा ही नहीं था। साल-वेद साल से अधिक कोई नहीं जी। मिजाज इनका जरा सुर्श था। पहली स्त्री ने एक बार शाफ में नमक अधिक डाल दिया; क्स, चाकू गर्म करके उसके नाखूनों में घुसेड़ दिया, जिससे फिर ऐसी भून न हो। पर वह बेचारी अस्पताल में छः मास तक पड़ी रही। दूसरी स्त्री को न जाने क्या हुआ कि भयानक खून यूकने लगी, और दो-ही दिन में मर गई । पड़ोसियों का कहना है कि पाँडेनी की राक्षसी मार का ही कारण था। तीसरी, वेचारी के पेट में बच्चा उलट गया, उसी वेदना में परलोक सिधारी। तब से उन्होंने फिर व्याह नहीं किया। उसके बाद छदम्मोजान से उनकी नान-पहचान हुई । पर एक दिन घर में उसकी लाश पाई गई। इसके खून का मुकदमा पाँडेनी पर चला भी, परसबूत न मिला। फिर भी न जाने किस सन्देह पर छः मास उन्हें 'बड़े- घर में रहना पड़ा। उसके बाद ही वह महात्मा होगये। भव जीव के नाम इनके घर में साँप ही है सांप पकड़ने में इनका बड़ा नाम है। अनेकों प्रकार के साँप इनके घर में रक्खे हैं । जब
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