पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/१८९

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उपन्यास " जीते-जी बाहर नहीं निकलती। भाप ये-खटके फद सल।" "काम होने पर पापकी खिदमत भी की जायगी।" "र, तो यात भी कहिये ?" यह यात धीरे में पहने के लिए पादेली जयनारायण के पोर पास ससफ भाये, और उनके मुंह में अपना फान सता दिया । जयनारायण कुछ हरफर बोले-"पाएको दया-दारू से बहुतों का भला होता है, आस-पास के गावों तफ में यह यात छिपी नहीं है।" "यह वो गुरु की कृपा है, हम तो अधम कोट है।" "यह तो पापफा पदप्पन है, पर धान मुझे भी बाज़माने की जरूरत पड़ी है........." जयनारायण का रख-मुंग और यात-चीत सुनकर पांडेजी यसल मामला भांप गये। उन्होंने बीच में पात काटकर धीरे-मे कहा- "तो तुम्हें धोखा न होगा, दीवानजी! गुरु की कृपा से मेरे पास भी वह-वह लटके हैं, कि यस!" इतना कहकर पादेनी ने लयनारायण की जाँच पर हाथ रखकर टीप दिया, और ऑसे चलाई। नयनारायण योले--"यही आश यो, तभी तो थापको -तफलील दी गई।" "तो कहिये, मामला क्या है, फाम ताट समगो।" "यात यदी येदंगी हुई है।" इतना फहफर नयनारायण अनुनय और करुणा की दृष्टि से पानी की योर देखने लगे। आगे उन्हें कहने का साहस भी न होता था।