पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२१०

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२०६ अमर अभिलापा co . "सुम्हारे लिये बेहतर है, फि तुम मेरी बात का ठीक-ठीक नवाब दो" "वह लटकी माहशा है । लालच में थाकर स्वयं पाती है।" "इसका सबूत ?" "तुम क्या कोई मैजिस्ट्रट हो, कि सबूत तुम्हारे सामने पेश "किया जाय?" "परन्तु मैंने कहा न, या तो वेगुनाही सावित करो, या दण्ड “भोगने को तैयार हो।" "मैं सफाई नहीं दूंगा।" "तव दण्ड भोगो।" "क्या दण्ड दोगे?" "मैं अभी तुम्हें मार डालूँगा।" इतना फहकर युवक ने 'घमघमावा छुरा हाथ में लेकर, मजबूती से कलाई में पकड़ लिया। राना साहय काँप उठे। वे कमरे से बाहर भागे, पर युवक ने एक लात मारकर गिरा दिया, और छाती पर सवार होकर -कहा-"अब भी समय है !" राजा चिल्लाने लगा। युवक ने मुंह पर हाथ धरकर कहा -"क्या वह लालच से स्वयं माई थी?" राना ने सिर हिलाकर कहा-"नहीं। मुझे छोड़ दो ! छोड़ दो!" "घरे पापी ! पाप किया, और झूठ बोलकर कलङ्क लगाया।