पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२१४ अमर अमिलापा माई के पास तार दे दिया गया-"तुम्हारी वहन किसी के साथ भाग गई । श्रय पाना व्यर्थ है।" चौंतोसवाँ परिच्छेद निस समय भूली-प्यासी थकित कुमुद भाई के द्वार पर पहुंची, उस समय रात होचुकी थी। उसके पास दूसरा तार भी पहुँच चुका था, और भाई-भावन कुमुद को विविध रीति से कोस रहे थे। कुमुद ने धीरे से द्वार खटखटाया, और आवाज दी। स्वर पहचानकर कहा-"कुमुद तो धागई दीखती है ?" भौनाई ने घृणा से मुँह सिफोड़ लिया। रक के प्रावेश में भाई ने नीचे दौड़कर द्वार खोल दिया। देखा-वह कुमुद, डिप्टी साहव की स्त्री, निसके घर थाने पर गाँव-भर में धूम मच नाती थी, एक मैली साड़ी पहने, गोद में बच्चे को लिये, नंगे पैर द्वार पर भिखारिन के वेश में खड़ी है। भाई ने उसे चुपचाप घर में ले लिया । कोई कुछ बोला नहीं। किसी ने कुछ पूछा भी नहीं। कुमुद ने देखा, यह क्या बात है, सारा संलार ही विमुख होगया! उन्ने कहा-"भाई, मैं बड़ी विपत्ति में पड़कर यहाँ आई हूँ।" भाई कुछ भी घोले नहीं, वे उठकर बाहर चले गये । अन्त में भावन का मुंह खुला। सने कहा-"साखा रच भाई बीबीनो?"