पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२२५

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उपन्यास २२१ घर में एक उसी से धनिष्टता थी। मन के भावेग को रोक रखने में असमर्थ होकर मालती ने रामनाय की दृष्टि की बात उससे कह दी। लता भी दुर्भाग्य से चञ्चल वृत्ति की स्त्री थी। वह सधवा थी, परन्तु विपत्ति के प्रभाव से उसकी चपल वृत्ति अधिकाधिक व्यग्र रहती थी। वासना-सम्बन्धी पातों का उसके पेट में खजाना भरा रहता था। वैसी यातें कहने-सुनने से उसे वहा रस पाता था । वह मालती के प्रति रामनाथ की चेपायों की बढ़े ध्यान से देखने-सुनने लगी। उसके मन में रामनाथ को एक बार देखने की वढी इच्छा हुई, और उसने उसे देख भी लिया। रामनाय को देखकर भी उसके मन में रामनाय के प्रति घृणा के भाव नहीं उत्पन्न हुए । उसने रामनाथ को नहीं, उसकी आँखों में नाचती हुई वासना को देखा। एक बार उसने हंसकर मालती से कहा-"तेरे उस बूढ़े छैला को मैने देख लिया है। क्यों घेचार को इतना सताती है ? और कुछ नहीं, तो जरा एक.ध वार ईल ही दिया कर ।" मालती ने क्रोध करके कहा- भाभी, ऐसी बात न किया करो। उसी पापी ने कुसुम लीनी को बे-घर-बार का किया है। मुझे उससे बड़ी घृणा है। "घृणा की क्या बात है री, अगर तेरा दूल्हा ऐसा ही होता, तब?" मालती वहाँ से रिसाकर उठ गई। लता ने देखा, यह उतनी.