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पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२५५

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इकतालीसवाँ परिच्छेद गोविन्दसहाय ने सिंह की तरह उपलकर यसन्ती को पछाड़ 'दिया। वह उसकी छाती पर सवार होगया, धौर जोर से उसका गला दबाकर कहा-"हरामज़ादी, सच यता, और कौन यहाँ मावा है?" यसन्ती ने पूरा जोर लगाया, पर चुट न सकी। अन्त में उसने यया-सम्भव चिल्लाकर कहा-"यहाँ लाख आवेंगे, तुम पोकनेवाले कौन हो? तुम्हारी कोई दवैन है, या व्याहता?" "मैं उसे भी तुम्हारे साय मार डालूंगा। यता, उसका नाम क्या है। "जो न मार डाले, वो तेरी जनती पर धिकार है ! मैं नहीं बताऊंगी।" गोविन्दसहाय ने और भी ज़ोर से गला दयाफर कहा- "वता लुबी, यता-वह यार कौन है?" "कमी नहीं, नान भले ही चली जाय ।" गोपिन्दसहाय ने उसका सिर धरती पर पटककर कहा- "मान खायेगी मेरा, और मौन करेगी यारों से क्यों ?" "हाँ, हाँ, यारों से।" इतना कहते-कहते अवसर पाकर उसने गोविन्दबहाय की कमीज़ फाड़ डाली, और उसे काट लिया ।