अमर अभिलापा अव तक रमाकान्त की स्त्री चुपचाप बैठी थी-यय बोली, "यह लड़का वो कहे-का था ही नहीं। उस दिन रामचन्द्र के यहाँ से खीर-पूरी का न्योता नीमकर पाया था-पैन यहुनेरा कहा कि सो जा, दुपहरी में कहीं मत जा । पर वह किसकी सुनवा था? एक न मानी-चला ही गया । वह सत्यानाशी पीपल भी वो रास्ते ही में है ?" इस पर सब योल उठीं-"यस, वो वहीं से प्राप्त लगगई! शिवचरणदास की स्त्री ने कहा- तो मौसी ! इससे बचने का कोई उपाय नहीं है ?" मौसीनी ने बड़े बड़प्पन से सिर हिलाफर फहा- "श्रो हो! इस काम में वो भोला काली जैसा देखा, ऐसा नितोकी में कोई न होगा।" इस पर गृहिणी बोली-"तो तुमने यह यात पहले क्यों न कही, मैं उसी को बुलाठी" "उसे बुलाती तो क्या तुम्हारा यचा मर जावा? पर माई, मैंने देखा, वैद्य-डॉक्टरों का इलाज हो रहा है उसमें न योजना "वैष-डॉक्टरों से तो कुछ न कुमा।" "होवा कैसे ? वे इस यात को बेचारे क्या सममें ! कोई बीमारी होती,वो माराम होता।" भय गृहिणी रोकर बोली-"हाप, में कैसी प्रमागिनी हूँ-मुझे यह बात तमी नहीं सूझी।"
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