२८४ अमर अभिलापा और वृक्षों की घनश्याम छटा, ये सब काँपते काँपते प्रतिविम्व- स्वरूप में मानों गंगा की स्वच्छता में अपना मुख देख रहे हैं। मन्दिर में प्रारती के वाद्यों की ध्वनि पूरित है, भागीरथी के तीर 'पर भक्त जन स्तवन कर रहे हैं। इसी समय काशी की सड़कों पर एक गाड़ी में अभागिनी भगवती अपने अवशिष्ट जीवन को इस पुण्य-भूमि में शान्तिपूर्वक ध्यतीत करने जारही है। धीरे-धीरे यह गाडी वेश्याओं के मुहल्लों की तरफ मुड़ी, और आगे चलकर एक मकान के धागे ठहर गई। कोचवान ने पुकारकर कहा-"बाबू ! आपने जिस मकान का पता दिया था, बही यह मकान है।" हरनारायण गाड़ी से नीचे उतर आये। उन्होंने अकच्का- कर देखा-यह मकान भी वेश्या का है। उन्होंने गादीवान से पूछा-"दाल की मण्डी यही है न?" "जी हाँ, और श्रापका बताया मकान भी यही है।" हरनारायण कुछ पसोपेश में पड़ गये, पर उन्हें अधिक देर इस अवस्था में न रहना पडा । मकान के भीतर से एक आदमी 'ने श्राफर पूछा-"श्राप किसे तलाश कर रहे हैं ?" हरनारायण ने मिमकते हुए आगे बढ़कर कहा-"इस में नो रहती है, उनका क्या नाम है ?-और वे कहां की रहनेवाली हैं?" वह आदमी उत्तर नहीं देने पाया था, कि इतने में छमाछम करती दुई वेश्या सामने श्रा-खड़ी हुई। उसका विचार भागन्तुक से मकान
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