पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२९८

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अमर अमिलाया - यो लन्ना किस बात की है ? अव मेरा वहाँन जाना होया है। इसी में तुम लोगों का कल्याण है। गृहस्थी धादमी बिना विरा- दरी नहीं नी सकता। पागलपन मत करो । मेरा नो-कुछ होगना, वह होगया। अपना रास्ता मैंने सोच लिया है- अहाँ से न जाऊँगी।" "तय तू यहीं करेगी क्या ?" भगवती ने फीकी हसी हँसकर कहा-"विश्वास रखो, अब पाप न करूंगी.... उसको यात काटकर हरनारायण ने कहा-"नहीं, मैं तुझे न छोईगा।" "पर मैं तुम्हारे पर नहीं रह सकती, उसमें मेरा तुम्हारा दोनों का मना नहीं है । तुम निस जिम्मेदारी पर यहाँ पाये हो, उसे सोचो।" कुछ विचारकर हरनारायण ने कहा-"बच्चा, एक बात है। क्या गोविन्दमहाय व्याह करने को राजी है ?" भगवती ने दुखी होकर कहा-"इस बात को थव न छेड़ो। वह समय गया । अब नो मैं चाहता हूँ, वही होने दो। मेरा अन्त ही ठीक है ! "मन्त ? क्या तुम आत्मघात करोगी?" "वो क्या और कुछ भी हो सकता है ? तुम घर नायो, मैं अपना मार्ग निकाल लूँगी । पर भैया ! मेरे अपराध क्षमा करना और नरो को सुखी रखना।" इतना कह, वह फूट-फूटकर रोने लगी। r