चावनवाँ परिच्छेद श्यामा पाचू काशी में कलक्टर होकर धाये हैं। ये नवयुवक, भायुफ और इन्साफ-पसन्द हाकिम प्रसिद्ध है। ममी उनकी तस्परता और न्याय की प्रशंसा करते हैं। उनको इनवास में एक मुकदमा दरपेश है। मिरल पेशकार ने सामने रसकर चपरासी फो भाषाज लगाने का हुरम दिया। चपरासी ने हाक लगाई- "मुसम्मात यसन्ती उर्फ़ थालीजान हाजिर...." एफ एणित सी फटे-पुराने पर पहने-शरीर-भर में जिसके घाव होरहे थे-नाफ पर पट्टी बंध रही थी, बाल सूर्य और विस्तर रहे थे। पुलिस ने फटघरे में ला-हाज़िर की। पेशकार ने ज़बान- यन्दी लेना शुरू किया। मैजिस्ट्रेट ने पला-"इस पर क्या मुक्क- दमा है। "हुजूर, यह गली-मुहल्लों में पुरे मतलय के लिये लड़कियाँ राती है । इसी जुर्म में इसे दो यार प्रयम भी सजा होचुकी है।" इसके याद गवाह पेश हुए । मुकदमा साबित हुभा । मैनि- स्ट्रेट ने पूला--"तुम्हें कुछ कहना है ?" "जो प्लो, यह कहूंगी।" "तुम यह बुरा काम क्यों करती हो?" "इसी से मेरी गुजर होती है।"
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