पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/३३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३२६ अमर अभिलापा 1 यह महिला जव पीढ़ी तक पहुंची, तो उसने इसपे भी कुछ मांगा। उसफी दयनीय दशा देखकर महिला को करुणा थागई। उसने पूछा-"तुम कौन हो? और इस तरह क्यों पड़ी हो?" मिसारिणी ने क्रुद्ध होकर कहा-"कुछ देती हो, तो देदो यज्ञायत से क्या नतीजा ?" महिला उसके क्रोध से स्तम्भित होगई। उसने कहा- "चहन, नाराज़ न हो। तुम्हारा कष्ट देखकर मेरी छाती फटती है। कहो तो, तुम्हारी ऐसी दशा कैसे हुई ?" भिखारिणी ने कुछ दवंगता से कहा-"छाती फटती है, तो यह अपनी धोती मुझे दे दालो।" मिखारिणी का ऐसा विचित्र भाव और जवाब सुनकर वह कुछ सोच रही थी, कि भिखारिणी की दृष्टि एक और तरक जाफर अटक गई । महिला ने देखा-कोई भद्र पुरुष अपनी स्त्री और गोद के शिशु के साथ स्नान करने के लिये पाये हैं- मोटर से उतर रहे हैं। मिसारिणी क्षण-भर वदवढ़ाती रही, और इसके बाद एक बड़ा-सा पत्थर उठाफर भद्र पुरुप पर दे मारा। महिला है, हैं ! क्या करतो हो ?' कहती ही रही, उधर परथर मारकर वह घृणास्पद गालियां देने लगी। परयर भद्र-पुरुष के पैर में लगा । वे अकचकाकर देखने लगे। देखते-देखते बहुत-से भादमियों इकहा होगये। पुलीस कॉन्स्टेदिल मी आगया।