पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/३३६

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३२८ अमर प्राभलापा का महिला ने फहा-"क्या कहा ? प्रकाश ? अाप फौनसे प्रकाश का नाम ले रही हैं ? क्या वही, जिन्होंने राना". खून किया था ?" "जी हाँ।" "वे आपके कौन है ?" "भाई।" "कैसे भाई ?" सुशीला घबरा गई । अब इसका क्या जवाब दे ? महिला ने दो वादम आगे बढ़कर कहा-"याप सुशीला वो नहीं ?" "मैं सुशीला ही हूँ।" "योह!" महिला ने सुशीला को छाती से लगा लिया, और उसके बच्चे को गोद में लेकर बार-बार पुचकारने लगी। सुशीला ने कहा-"क्षमा करें, आप मुझ पर इतनी कृपा करती है, और मैं थापको पहचानती भी नहीं। क्या यह मेरी दीठता नहीं ?" "नहीं, बहन, प्रकाश मेरे ममेरे भाई होने हैं। तुम्हारे लिये राना साहब की हत्या करने, छः वर्ष का दण्ड पाने, और त्रियों के डेपुटेशन से प्रभावित होकर उनको गवर्नर का क्षमा- दान मिलने की कथा मुझे मालूम है। प्रकाश मेरा बड़ा मान करते हैं। श्यामापावू से तुम्हारे विवाह होने की बात स्वयं उन्होंने मुझे लिखी थी। मैं अभागिनी सब से अलग रहने को ,