उपन्यास । करती हूँ मैं दुःखी नहीं हूँ। मेरी थामा सन्तुष्ट है, और मैं अब सब तरह निर्भय हूँ।" तपस्विनी महिला की उपरोक्त बातें सुन, लव स्तब्ध रह गये। तीसरे व्यक्ति वही उसके जेठ थे। उन्होंने कहा-"यहू, मेरे अप- राधों को समा फरना, मैंने तुम्हारे साथ या अन्याय किया।" कुमुद ने कहा-"याप वैसे ही हमारे पूज्य और बड़े हैं, और मेरे मन में आपके प्रति फोई इंप-भाव नहीं।" थोडी देर धुप रहकर उसने फिर कहा-"प्रकाश भाई, विलास और वासना का साधारण जीवन सभी व्यतीत करते हैं। पर मैं अपना अनुभव फहती हूँ, कि त्याग थोर तप का जीवन उससे कहीं अधिक सरल है। जो लोग उसे कठिन बताते हैं, उन्होंने उमका अनुभव नहीं उगया ! जगत् के भोगों में तो गृहस्य को भी उतना न फंसना चाहिये, क्योंकि ये शरीर और धारमा दोनों ही फो नाश करनेवाले हैं।" प्रकाश में कहा-"वहिन, मैं तुम्हारे जीवन का अनुसरण करूंगा।" "तुन ? प्रकार, तुम?" "हाँ, मैं शून्य-हृदय नहीं-वासनायुक्त भी नहीं।" प्रकाश उठकर चलने लगे। श्यामायाबू नर्माहत हुये। उन्होंने उनका हाथ पकड़कर कहा -"प्रकाश माई, अगर तुम्हारी यही इच्छा है, कि हम लोगों का नोरन दुःखद हो, तो बात ही दूसरी है।"
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