पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/४४

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४४ अमर अभिलाषा उसने जबाय की भी प्रतीक्षा न की, तेजी से चल दिया। लड़की पागल की तरह देखती रही। उसकी सुन्दर आँखों में आँसू के बड़े-बड़े मोती छलला पाये । दोनों रुपये उसने उठा लिये, और किराया चुकाने वह सीदी उतरकर नीचे को चली। पाँचवाँ परिच्छेद "बड़े ध्यान से पढ़ाई होरही है-चस, अब दफ्तर जाने की ही कसर है।" भगवती ने पुस्तक से सिर उठाकर देखा,-हरसरन की वहन चम्पा खड़ी है । उसे देखते ही भगवती सफर बोली- "बस, दास्तर में कोई जगह खाली हुई, और मैंने नौकरी की। श्रा घेठ, तू कब से खड़ी है?" चम्पा ने बैठकर कहा- "फिर तो तु हमसे बात भी न करेगी? तब तो तू मर्द बन नायगी, और फिर दूसरा ब्याह करने में भी कोई दोप न रहेगा।" "हाँ, हाँ-पर व्याह मैं तुमसे करूँगी ?" "मुझसे!" "हाँ, क्यों हर्ज ही क्या है?" "मुझे दूल्हा बनावेगी ?"