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'अपराधी', 'कुण्डली-चक्र', 'निर्मला', 'हृदय की परख' --
आदि ऐसे कुछ उपन्यासों के नाम है। उक्त सभी उपन्यास
हमारी समझ में, अन्तर्राष्ट्रीय सामाजिक साहित्य में अपनी
गणना कराने के अधिकारी हैं। हमारा विश्वास है, कि
'अमर अभिलाषा' भी निश्चित रूप से ऐसी ही एक वस्तु है।
ऊपर जिन पुस्तकों का नाम लिखा गया है, हिन्दी का
औसत-पाठक उनसे और उनके निर्माताओं से प्रायः
परिचित है। हिन्दी-संसार ने उक्त लेखकों के प्रति
आवश्यकता से अधिक कृतज्ञता-प्रकाश किया है, इस बात
से भी कोई आदमी असहमत नहीं होगा। पर हमें भय है, कि
'अमर अभिलाषा' के लेखक महोदय श्री० चतुरसेनती
शास्त्री को न केवल हिन्दी साहित्य के कर्णधारों से उचित
धन्यवाद प्राप्त नहीं हुआ, अपितु उनके साय असहनीय
अनाचार हुआ है। हिन्दी की अर्धान्य दुनियाँ की नज़र में
शास्त्रीजी ने 'मारवाड़ी-अंक' और 'व्यभिचार' का प्रणयन
करके दो अक्षम्य पाप किये है। इन्हीं पापों के आधार पर
भोले पठित-समाज की आँखों में धूल झोंकनेवाले कुछ
नकली नेताओं ने शास्त्रीजी को दुनियाँ की आँखों में
निन्ध भौर बहिस्कार-योग्य ठहराने की चेष्टा की है! ऐसे लोगों