पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/२४

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RO अलंकारचंद्रिका सूचना-जहाँ कवि का स्वयं यह तात्पर्य होता है कि पाठक दोनों वा तीनों अर्थों की ओर ध्यान दें वह श्लेप अर्थालंकार है। प्रसंगवश उसके कुछ उदाहरण यहीं लिये देते हैं जिसले पाठकगण दोनों के भेद और बारीकी को भली भांति समझ सकें। (सेनापति कवि सूम और दाता दोनों के लिये कहते हैं) नाहीं नाहीं कर थो माँगे बहु दन कहैं, मंगन को देखि पट दंत बार वार हैं। जाको मुख देख भली प्रापति की धगे होत, सदा नुभ जन मन भाय निराधार हैं। भोगी है रहत दिलसत अवनी के मध्य, कन कल जोर दान पाठ पर वार हैं। सेनापति बैनन की रचना विचागे जाम, दाता अरु सूम दोऊ कीन्हें इकतार हैं । (२) पट = वस्त्र, किवाड़। (२) दातापक्ष में 'सुभजन मन भाय' और सूम पक्ष में 'सुभ जनम न भाय' । (३) भोगी=भोग विलास करनेवाला, और साँप । (४) कन कन = कनक न और कणकण (थोड़ा थोड़ा)। ( भूषण कवि कहते हैं) सीता संग सोभित मुलच्छन सहाय जाके, भूपर भरत नाम भाई नीति चारु है। 'भूषन' भनत कुल सूरकुल भूषन हैं, दासरथी सब जाके भुज भुव भारु है । अरि लंक तोर जोर जाके संग बान रहैं, सिंधुर हैं बाँधे जाके दलको न पारु तेगहि के भेटै जौन राकस मरद जाने, सरजा सिवाजी राम ही को अवतारू है ॥ 1