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पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/५४

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अलंकारचंद्रिका तपमाला जह्न की सु जपमाला जोगिन की, आली आपमाला या अनादि ब्रह्मवेस की। कहै 'पद्माकर' प्रमानमाला पुन्यन की, गंगाजू की धारा मनिमाला है धनेस की। ज्ञानमाला गुरु की गुमानमाला ज्ञानिन की, ध्यानमाला ध्रुव मौलिमाला है महेस की। पुनः--सव गुन भरा ठकुरवा मोर । अपने पहरू अपनै चोर ॥ १०-संदेह दो०-बहुविधि वर्णत वर्य को नियत न तथ्य-अतथ्य । अलंकार संदेह तहँ बरनत हैं मतिपथ्य ॥ विवरण--जहाँ किसी वस्तु को देखकर संशय बना ही रहे, निश्चित न हो। 'भ्रांति' में एक वस्तु पर निश्चय जम जाता है, संदेह में किसी पर नहीं जमता। धौं, किधौं, कि, की, या, अथवा इत्यादि संदेहसूचक शब्द इस अलंकार के वाचक हैं। जैसे-- की तुम तीन देव महँ कोऊ। नरनारायन की तुम दोऊ ॥ की तुम हरिदासन महँ कोई । मोरे हृदय प्रीति अति होई ॥ की तुम रामदीन अनुरागी । आये मोहि करन बड़भागी॥ कवित्त--पाय अनुसासन दुसासन के कोप धायो, द्रुपदसुता को चीर गहे भीर भारी है। भीषम करन द्रोन बैठे व्रतधारी तहाँ, कामिनी की ओर काहू नेक ना निहारी है। सुनिकै पुकार धायो द्वारका ते यदुराई, बाढ़त दुकूल बँचे भुजबल हारी है।