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अहङ्कार

अवश्य ही यह सम्मान तुम्हारी मूर्ति अथवा छाया का हुआ होगा क्योंकि फ्लेवियन, तपस्वीगण और दर्शकों ने अपनी आँखों से तुम्हें विमान पर ऊपर जाते देखा।

पापनाशी ने सन्त ऐन्टोनी के पास जाकर उनसे आशीर्वाद लेने का निश्चय किया। बोला—

बन्धु जोज़ीमस, मुझे भी खजूर की एक डाली दे दो और मैं भी तुम्हारे साथ पिता ऐन्टोनी का दर्शन करने चलूँगा।

जोज़ीमस ने कहा—

बहुत अच्छी बात है। तपस्वियों के लिए सैनिक विधान ही उपयुक्त है, क्योंकि हम लोग ईश्वर के सिपाही है। हम और तुम अधिष्ठाता हैं, इसलिए आगे-आगे चलेंगे, और यह लोग भजन गाते हुए हमारे पीछे-पीछे चलेंगे।

जब सब लोग यात्रा को चले तो पापनाशी ने कहा—

ब्रह्मा एक है क्योंकि वह सत्य है और सत्य एक है। संसार अनेक हैं क्योंकि वह असत्य है। हमें संसार की सभी वस्तुओं से मुँह मोड़ लेना चाहिए, उनसे भी जो देखने में सर्वथा निर्दोष जान पड़ता है। उनकी बहुरूपता उन्हें इतनी मनोहारिणी बना देती है जो इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि वह दूषित हैं। इसी कारण मैं किसी कमल को भी शान्त, निर्मल सागर में हिलते हुए देखता हूँ तो मुझे आत्मवेदना होने लगती है, और चित्त मलिन हो जाता है। जिन वस्तुओं का ज्ञान इन्द्रियों द्वारा होता है, वे सभी त्याज्य हैं। रेणुका का एक अणु भी दोषों से रहित नहीं, हमें उससे सशंक रहना चाहिए। सभी वस्तुएँ हमें वहकाती है, हमें राग में रत करती हैं। और स्त्री तो उन सारे प्रलोभनों का योग मात्र है जो वायुमण्डल में, फूलों से लहराती हुई पृथ्वी पर और स्वच्छ सागर में विचरा करते हैं। वह पुरुष