पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गधीजी . करके, तोलमापके जरिये पैदा नहीं हो सकता था । अगर दिलमें यकीन हो जाता कि मेरा रास्ता सही रास्ता था, तो उसपर अमल करना आसान था । जनताके उपर ददायके वक्त असर होता है। मेरे निवेदनका असर नहीं हुआ। इससे जाहिर होता है कि या तो मेरे शब्दों में शक्ति नहीं या ईश्वरको ही कुछ ऐसी इच्छा है कि जिसफा हमें कुछ पता नहीं। यह निवेदन व्यथित हृदयसे निकला है। मैं उसे रोक नहीं सकता था। यह निवेदन केवल उसी क्षणके लिये नहीं लिखा गया था। मुझे पूर्ण विश्वास है कि उसमें बसाया गया सत्य शाश्वत है। अगर आजसे भूमिका तैयार न की गयी, तो युद्धके अन्तमें जब चारों ओर खिन्नता और पकानका वातावरण होगा मया तंत्र बनानेका समय ही नहीं रह जायगा। नया तंत्र जो भी होगा वह जाने-अनजाने माणसे हम जो भी प्रयत्न करेंगे, उसीका परिणाम होगा। घर- असल, प्रयत्म तो मेरा निवेदन निकलनेसे पहले ही शुरू हो चुका था। आशा है कि निवेशनने उसे उसेजन बिया होगा और एक निश्चित दिशा दिखाई होगी । मेरी गैर अधिकारी मेलाओं और ब्रिटिश प्रजाका मत डालनेवालोंको सलाह है कि यदि उन्हें यकीन हो गया है कि मेरा रास्ता सही है, तो वे उसे स्वीकार करानेका प्रयत्न करें। मेरे निषेवनने जो महान प्रश्न उठाया है, उसके सामने हिन्दुस्तानकी आजादीका प्रश्न तुच्छ बन जाता है। भगर मैं इन वो अंग्रेज मित्रों के साथ सहमत हूँ कि मिटिमा सरकारका ढंग शोचनीय है। लेकिन इन मित्रोंने हिन्दुस्तानकी आजादीकी कल्पना करके उसके जो नतीजे निकाले हैं। वह सरासर गलत है । वह भूल जाते हैं कि मैं इस चित्रसे बाहर हूँ। जिनके सिरपर कार्य- समितिके पिछले प्रस्तावको जिम्मेवारी है, उनको धारणा यही रही है कि स्वतंत्र हिन्धुस्तान विटनके साथ सहयोग करेगा। उनके पास जर्मनीके आगे झुकने या अहिंसक तरीके से सामना करनेका प्रश्न ही नहीं उठता। भगर, यद्यपि विषय दिलचस्प और ललचाने वाला है, तो भी मुझे हिन्दुस्तानकी आजादी और उसके फलिसाोंका विचार करनेके लिए यहाँ नहीं ठहरमा चाहिने। मेरे सामने इस भाषके पत्र और अखबारको कतरने पड़ी है कि जब कांग्रेसने हिंसक फौजके जरिये हिन्दुस्तानको रक्षाको सैयारी न फरमेकी आपकी सलाह नहीं मानी, तो आप अंग्नेजोको यह सलाह कैसे दे सकते हैं और उनसे कैसे आशा रख सकते हैं कि वह इसे स्वीकार करेंगे यह दलील देखने में ठीक मालूम देती है, मगर सिर्फ देखने में हो। आलोचक कहते ? है कि जब मैं अपने लोगोंको ही न समामा सका, तो मुझे यह आशा रखनेका कोई हक नहीं है कि आज जीवन और मौतकी लड़ाई के क्षधारमें पड़ा ब्रिटेन मेरी बात सुनेगा। मेरा तो जीवनमें एक खास ध्येय है। हिन्दुस्तानको करोड़ोंकी जनताले अंग्रेजोंकी तरह के कड़वे स्वाद नहीं चखे। ब्रिटनने जिस मकसदको दुनिया के सामने घोषणा की थी, अगर उसे हासिल करना है तो उसे अपनी नीति बिल्कुल बदल देनी होगी। मुझे ऐसा लगता है । जैसे जानता हूँ कि क्या परिवर्तन करनेकी जरूरत है। जिस विषयको यहाँ चर्चा हो रही है, उसमें मेरी कार्य समितिको न समझा सकनेकी बात साना असंगत है। ३४२ . .