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गाँधीजी

कांग्रेसमें गंदगी काँग्रेसकी गन्दगीके प्रदनके सम्बन्धमें मे यह कहुँगा कि उसे निर्मल करनेका सर्वोत्तम उपाय यह हूँकि हम खुद अपनी शुद्धि करें ।संगठनात्मक अंगसे संबंध रखनेयालोी समस्याको तो काँग्रेस

हल कर लेगी । सत्य और अहिसा आपलोगोंकी अपेक्षा उसके लिए कुछ कमकी महत्वकी चीज नहीं

है। फिर कांग्रेस उसे बदल सकती है, पर आप लोग ऐसा नहीं कर सकते ।

प्रचार कमसे कम अब मे दो धब्द उसके विषयमे कहूँगा, जो गान्धीयाद कहा जाता है, और उसके प्रचारके बारेमें भी। सत्य और अह्साका प्रचार जिलना इन सिद्धान्तोंके अनुसार वसस्‍्तुतः आचरण करनेसे होता है, उतना पुस्तकोंमें नहीं होता । सत्य-आचरणका जीवग पुस्तकोंसे फह्ठीं

ज्यादा महत्व रखता है । भेंयह नहीं कहता कि हम पुस्तकों या पत्र प्रकाशित न करें । मेंतो फेवल

यही कहता हूंकि वे आवश्यक नहीं है। अगर हम अहिंसा और सत्यके सच्चे भवत हैं, तो ईदवर' हमें कठिन-से-कठिन समस्याओंकों हल करनेफी आवश्यक शक्ति दे देगा । विशेधीरे

दृष्टिकोणकों समझनेकी सीयतका इस भक्ति्में समावेश हो जाता हूँ।उसको भनोवृत्तिमें

उत्तरनेका और उसका दृष्टिकोण समझनेका सच्चा प्रयत्न हमें करना ही चाहिए। हिसाके

मुंहमें अहिसाका सीधे चले जानेका यही अर्थ है। अगर हमारे भनकी इस प्रकारकी बृत्ति हो

तो हम अहिसाके सिद्धान्तोंका प्रधार फरनेकी आशा कर सकते है । बगेर इसके किताबों और

अखबारोंका प्रचार-कार्य कोई अथं नहीं रखता। आपको ज्ञायद यह सालुम नहीं है कि सें पंग इंडिया'को किस उपेक्षाके साथ चलाया करता था। यंग इंशियाका' प्रकाशन जब बन्द

कर देना पड़ा, तब मेत्र इसके लिए एक आँसू भी नहीं बहाया था। मगर सत्पाग्रह, जिसकी कि मदद करता, इसका उद्देदय था, बच गया। कारण कि सत्याग्रह किसी बाहुरी मदव॒पर सिर्भर

नहीं करता, वह तो अपनी सारी शक्ति अन्दरसे प्राप्त करता है । हरिजेन सेवक १३ सई, १९३९

दे सत्य के पास अपनी रक्षाके छिए अमोध दावित है। सत्य ही

जीवन है और ज्योंही यह किसी मानव॑-व्यक्तिमें अपना घर कर छिता है त्योंही यह अपने को फैला लेता है |” “अांधीजी ४६६