पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/६२

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दोषी नहीं रात्यात्रह संबपी काभ्रेसी प्रस्तावपर इस समय जो बाद-विवाद चल रहा है, उसके

पारेभ ० रापमबीहर लोहियाने मुसे एफ ऊप्वा और युक्तियुक्त पत्र भेजा है। उसका एफ जंग ऐसा है, जिरापर सार्वशणिक रूपसे विचार फरनेकी अत्वककता हे । यह यह है-#आपके मिदियय कार्यकसपे सत्यागहका जो सिद्धान्त हे उससे जरा भी उधर-उधर ठोना आप रबीकार गही करेंगे। यया रह सभव नही है कि आपके कार्यकमके अलावा अन्प फाय कमोका जाधार बनानेकोे लिए सत्याग्रहक पिद्धाग्तकों विश्त-्यापी बना विया जाय' ? गागद यह स भव वही है , लेकिन आपके खिलाफ मेरी यही दठीठ हे कि आपने ऐसे किती गसोगको प्रोत्याहन नही दिया है। भविमडल राबधी जार रचनाताक हलललबो आपके फार्य क्मको जज छोग सर्ज ता पर्याप्त नही रामझते , इसलिए वे किशानो आर मजदूरोके कार्यऋगोकी आज ॥ रहे हे । ये नथे कार्प ।ग ऐसे है, जिनम सामाग्य रूपमे सत्याग्रहकी कोई हलचल ते होने१र भी स्वानीय हतपल बनी रहती हे । सामाग्य रूपसे सत्याग्रह शुरू करनेका तरीका जगतक जापको न मिछ जाप ,तबतक वया आप इन छोड सत्याग्रहोको रोक दंगे ? ऐसा करनेमे' उस आरा जबाताके फेलन का डर हैजो दमनसे उत्पन्न होती हे। अहिसात्मक सामूहिक कारवाई

उन निरणी ओर बहुत बेशफीमत रोगातोमेसे एक हे,जो सारे इतिंहासमे मनुष्य--जातिने प्राप्त की हो; मगर यह हो सकता है कि हम उसको संभाल कर रखना और जारी रखना न जाने ।/ मेरे विश्चित कार्यवरमें संत्याभ्रहूका जो स्थान हे उससे जरा भी इधर-उधर होनेकों नेकेवल सेन भना ही नहीं किया बल्फि अवसर नये कार्येश्भोंफों भी निमंत्रित किया है। यहू में पहले ही जतला जुक। हूँकि कॉप्रेस4।वियोंकी उदासीलताका कारण यह नहीं

हैं (क उस कार्य क्मर्मोंकुररतन कोई खराबी है, बल्कि वरअसल बाल यह है कि अहिसाएों उसका जीवित पिशभास नहीं है। भला इससे बढ़कर और वया बात हो सकती है कि विभिन्न जातियोंभे पूर्ण एकता हो, अस्पुब्यता दूर हो जाय, शराजकी हुकाने अच्य वारके पारामस होयेपाली आमदर्नीफा बलिदान कर विगरा जाय और सिलके कपड़ेकी जगह खादी

हे ले ? सेरा तो कहुना हे कि हिंहू-मुललसात अपने आपसके अविद्वासकों' दुर करके सगे

भावयोंकी तरह ते रहें, हिंहू अगर अस्पृश्यताके अभिकज्ञायफों छोड़कर अपनेकों शुद्ध न करें और दस प्रकार उत छोगोंके साथ निकद संपर्क स्थापित से करें फिल्हें सदियोंसे उन्होंने समाजसे

बहिष्कृत कर रखा हूँ, भारतके धनी पुद्ठपनस्त्री अगर अपने आप अपने ऊपर इसलिए कर मे लगायें कि जो परीध कोश पाराव तथा अस्य नशोंके समबूरन विकार होते हैं, शराय धथा अन्य नशीली चीमोंकी दुकानें ब् होकर उसके लिए वह प्रलोधन न रहे, और अस्लमें

छाज़ों अपभूरोंके साथ तादाक्य करमेंके लिए अगर हम सिलके कपड़े का शौक छोड़कर

भारतकी झौपड़ियोंें कारों हृधोले अनतेबाली लादीकों न अपना लें तो अधहिसात्मक

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