पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१६६

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अर्जी पर राजकर्मचारियों की यह सम्मति हुई कि विधवा से दत्तक पुत्र लेने के लिये नजराना लेकर उसको पुत्र लेने की आज्ञा दी जाय, परंतु जब यह अर्जी बाई के समक्ष उपस्थित हुई तब बाई ने कहा कि पुत्र लेने की परवानगी देना मैं भी उचित समझती हूं । परंतु नजराना किस कारण से लिया जाय यह मेरी समझ में नहीं आया, उसके पति ने मेहनत करके और नाना प्रकार के कष्ट सहन कर द्रव्य संचित किया है, उस द्रव्य पर दूसरे का क्या अधिकार है । इसके अतिरिक्त यदि विधवा के पति ने इस धन को अनीति तथा असत्य व्यवहार से एकत्रित किया हो तो वह द्रव्य दूसरे के सर्वनाश का भूल होगा, इस कारण नज़राना लेने की कोई आवश्यकता नहीं है । विधवा को शास्त्र में दत्तक पुत्र लेने का पूर्ण अधिकार है । इतना कह उन्होंने उस विधवा की अर्जी पर आज्ञा लिख दी कि तुम अपने इच्छानुसार दत्तक पुत्र लेलो, इस बात से हम को अत्यंत हर्ष है । पहले से जिस प्रकार तुम्हारी लौकिक रीति चली आ रही है । उसी को सम्हाल कर अपना कार्य करो, इससे सरकार को भी सतोष होगा ।

बाई को अपनी प्रजा पर प्रेम करने तथा उनकी राज्यकार्य करने की प्रणाली और अपना अधिकार स्थापित रखने की कितनी योग्यता थी सुयोग्य जन भली प्रकार जान सकते हैं ।

(६) सीरोज में एक धनाढ्य साहूकार खेमदास नामक रहता था । उसके निपुत्र होने के कारण चिंता करते करते उसका स्वर्गवास हो गया । उसकी विधवा को छोड़ उसके कुल में उस