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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१७५

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रोला छंद *

डंका संग निशान दु:ख की ध्वजा उड़ावत ।

त्योंही वाद्य अनेक, शोकभरि गुणगन गावत ।।

पूज्य विप्रवर वृन्द दुःख से भरे लखाते ।।

नैन नवाए चले भिन्न मारग में जाते ॥ १।।

तिन पाछे सरदार सकल आतक गवाँए ।

राजपुरुष मतिमान चलत हैं शोक समाए ।।

औरहु सेवक शूर, भूमि पै दीठि गड़ाए ।

मंद मंद पग धरत, वणिक ज्यो मूर गवाँए । २ ।।

इनके पाछे लखहु भव्य अर्थी है आवति ।

पुरजन परिजन मित्र भीर सँग माहि लगावति ।।

मृत शरीर यशवंत राव को आज जात है।

अजहूँ तन सो तेज कढ़त वाहर लखात है ।। ३ ।।

अर्थी पाछे लखो तरुण विधवा है वाकी ।

लखि तिनको तहँ फाटति नहि छाती है काकी ।।

अरे ! दैव मतिमद कहा याकी गति कान्ही ?

कुसुमकली नव छेदि, अग्नि में मानहुँ दीन्ही ।। ४ ।।

इतने ही में देखि परी, महरानी आवति ।

वृद्ध ब्राह्मण साथ, परम करुणा दरसावति ।।

दर्शकगण की दु:खधार हू उमड़ति जहँ तहँ ।

जाय मिलति है शोकसिंधु में वहि मारग महँ ॥ ५ ॥

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* मिसेस आन देशी की अग्रेंजी कविता का छायानुवाद पद्यरूप में हमारे मित्र मास्टर राधाकृष्ण जायसवाल ने किया जिसके लिये हम आपके आभारी हैं ।