पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/३

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श्रेष्ट है, इससे इस लोक में सब प्रकार के सुख और कार्ति प्राप्त होते हैं, और परलोक में भी शांति मिलती है।

आज हम जिस चरित्रनायिका का जीवनचरित्र अपने सहृदय पाठकों के कर-कमलों में रखते हैं, उनका भी यही सिद्धांत था कि धर्म-बल के समक्ष संसार में अन्य बल सदैव मनुष्य को चिंता में उलझा कर दुःख का कारण होता है। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन अनेक हृदयविदारक कष्टों को पग पग पर सहन करके जन्म भर पूर्ण रूप से धर्म पर आरूढ़ रहते हुए समाप्त किया।

इंदौर राज्य के मूल-पुरुष मल्हारराव होलकर की पुत्र वधू श्रीमती देवी अहिल्याबाई का नाम आज भारत में चारों अर गूँज रहा है, और पाश्चिमात्य देशों के विद्वानों के हृदय पर अंकित हो रहा है। आपने अपने धर्मबल से तीस वर्ष पर्यंत राज्य किया था। आपके धर्म करने की ऐसी विलक्षण शैली थी कि संपूर्ण प्रजा सर्वदा आनंदित और सुखी रहती थी। आपकी राज्यप्रणाली को सुनकर संपूर्ण विद्वन्मडल आपकी मुक्त कंठ से कीर्ति गाते हैं।

बाई के संपूर्ण गुणों का उल्लेख करना मुझ सरीखे अल्पज्ञ के लिये छोटे मुँह बड़ी बात कहने के समान है, परंतु साहित्यप्रेमी विद्वान् स्वजातीय भूषण स्वर्गवासी पंडित गणपति जानकी राम दुबे, बी० ए० के अधिक उत्साह दिलाने से मैंने यह काम अपने हाथ में ले लिया। इसमें यदि सहृदय पाठकों को अवलोकन करते समय कोई त्रुटि जान पड़े — और वे अवश्य होवेंगी, क्योंकि पुस्तक लिखने का यह कार्य मेरा प्रथम ही