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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/४९

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की जो स्थिति थी उसको पुनः प्राप्त करने के हेतु राघो यादादा, मल्हारराव होलकर तथा बहादुर मेंधिया ने अपना प्रभुत्व फिर से स्थापित करने के हेतु तथा द्रव्य के लोभ के वशीभूत होकर प्रस्थान किया, परंतु उत्तर हिंदुस्थान ऐसी पवित्र भूमि के दर्शन और सर्वश्रेष्ट गंगा के जल का पान वीर मल्हारराव के भाग्य में इस बार न था । मार्ग में अचानक इनकी प्रकृति बिगड़ गई इस कारण ग्वालियर राज्य के समीप आलमपुर नामक स्थान पर कुछ दिन निवास करने की इच्छा में वे अपने साथियों के सहित ठहर गए । परंतु उस सिंहरूप वीर को यह नहीं ज्ञात था कि मै इस स्थान पर सदा के लिये निवास करूंगा । जिस मालवा प्रदेश में शूरता के साथ गिरधर बहादुर को परास्त कर अपना संपूर्ण अधिकार जमाया था, जहाँ पर सैकड़ों मनुष्य की युद्धरूपी यज्ञ में आहुति दे उस भूमि को निज के प्रासाद के स्थापित करने के हेतु युद्ध किया था, जिसे नित्य नाना प्रकार के सुखो का केंद्र मान रखा था, जहां पर अपनी लक्ष्मीतुल्य प्रिय पुत्रवधू का स्पर्श किया हुआ सुस्वादिष्ट षडरस व्यंजन का वे उपभोग करते थे आज उससे दूर एक साधारण पथिक के समान मल्हारराव होलकर अपने अंत समय की प्रतीक्षा करने लगे । इस स्थान पर उनके कान में अत्यंत कष्टदायक शूल उत्पन्न हो गया जिसके कारण दुखित होकर साथ आए हुए तुकोजी को अपने समीप बुला कर नाती मालीराव की रक्षा का भार उन पर सौंप तथा इस घराने के नाम को उत्तम प्रकार से रखने की आशा तुकोजी