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स्वयं अहिल्याबाई भी अपनी प्रजा को प्राणों से भी अधिक
चाहती थीं। उनको दुख देखी वे भी बहुत चितिंत तथा दुखी रहतीं । बाई को अधिक दुखी तथा असंतुष्ट देख प्रजा सर्वदा यही कहा करती थी कि-
ऋणकर्ता पिता शत्रु माता च व्यभिचारिणी
भार्या रूपवती शत्रुः पुत्रः शत्रुरपंडितः ।।१।।
( चाणक्य )
अर्थात् ऋण करनेवाला पिता शत्रु है, व्यभिचारिणी माता, सुंदर स्त्री और मूर्ख पुत्र ये सब वैरी के समान होते हैं । न जाने पूर्व जन्म के किस पाप से अहिल्याबाई के समान पुण्य, स्त्री के गर्भ से इसे दुष्ट पुत्र ने जन्म लिया । बाई को पुत्र के अत्याचारों से दिन-रात रोते और विलाप करते ही बीतता था। स्नेहवती माता के अंत:करण को निशि दिन पीड़ित करने के कारण मालीराव अधिक दिनों तक राज का सुस न भेाग सका, किंतु केवल नौ महीने राज्य का सुख भोग स्वर्गवास हुआ ।
मालीराव के अत्यंत दुराचारी होने से तथा थोड़े ही समय तक राज्य मुख भौग कर शीघ्र परलोक सिधारने से किसी किसी दुष्ट जीव ने यह समझा कि स्वयं बाई ने इसकी प्राणहत्या कराई है। इस प्रकार का अपवाद बाई पर रचा गया, परंतु वास्तव में उसकी मृत्यु ईश्वरी सूत्र से ही हुई थी । जिस माता ने बड़े कूष्ट से और नाना प्रकार के दुःखो को सह कर पुत्र जन्म दिया हो, चाहे वह कपूत ही क्यों न हो परंतु उसकी आत्महत्या करना कहाँ तक माननीय है ? बन के पशू पक्षी, जल