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पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/५८

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है । यह मेरी इच्छा पर निर्भर है कि मैं किसी योग्य बालक का दत्तकविधान करूँ अथवा न करूँ । ऐसी अवस्था में आप बुद्धिमान को यह उचित नहीं है कि मुझ अबला पर किसी प्रकार का अन्याय करें, या मुझे व्यर्थ दबावे । आप स्वयं बड़े विचारशील हैं और यथार्थ में यह राज्य आपका ही दिया हुआ है, परंतु इसको पुनः ले लेने से आपके गौरव में न्यूनता आ जायगी । संभव है कि किसी धन और राज्य हस्तगत करनेवाले लोभी मनुष्य ने आपके द्वारा अपने को यहाँ व्यर्थ बुला भेजने का कष्ट देकर अपनी स्वार्थसिद्धि का सुगम मार्ग समझ रखा हो । परंतु आप बुद्धिमानों को उनकी बातों पर ध्यान न देना ही श्रेयस्कर है। आगे जैसा आप उचित और योग्य समझे करें । परंतु यदि अपलोग नीति को तिलांजलि दे अन्याय के पक्ष को स्वीकार करेंगे, तो उसके उचित फल को अवश्य पावेंगे ।

इधर धीरे धीरे गंगाधरराव ने यह अपवाद बाई के ऊपर रचा कि स्वयं बाई ने ही पुत्र मालीराव की हत्या कराई है । सन्मार्ग पर पैर रखनेवाली और प्रजाभक्त अहिल्याबाई सरीखी स्त्री पर इस प्रकार का कलंक स्थापित कर राज्य का सर्वनाश करने का बीड़ा उठाना कितना बड़ा पाप है इस खबर के सुनते ही बाई बहुत दुखी हुई और हताश होकर विलाप करने लगीं । पहले तो वे अपने प्राणपति, प्रिय श्वशुर और पुत्र के शोक से चिंतित और दुखी हो रही थीं और अब दुष्टों ने पीछा किया । परंतु धैर्य और साहस रख उन्होंने ईश्वर का ध्यान किया और अपने को सम्हाल पर -