पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/६०

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कदाचित् हुआ हो कि इसके प्राणांत होने से स्वयं इसको मुझे तथा प्रजा को दुःख से शांति होजायगी । क्योंकि मालीराव पागलपन की स्थिति में बहुत ही अत्याचार और दुष्ट कर्मों के करता था, पर इस विचार के कारण बाई पर दूषण नहीं आरोपन करना चाहिए, किंतु उनके इस अद्वतीय विचार को एक प्रकार का उनके लिये भूषण ही समझना चाहिए।"

मालीराव के देवलोक सिधारने के कुछ दिन उपरांत संपूर्ण राज्य में चोर, लुटेरों और डाकुओं ने प्रजा के नाना प्रकार से अधिक कष्ट देना आरंभ किया, जिसको सुनकर अहिल्याबाई, जोकि अपनी संपूर्ण प्रजा को यहाँ तक कि उसमें जाति पांति का भी भेद न रख कर, अपने पुत्रवत प्रेम करती थी, और उनकी प्रसन्नता में प्रसन्नता और दुःख में सु:ख मानता थी, वे अत्यंत व्याकुल हो गई, और चौर, डाकू लुटेरों को भगा कर अपने संपूर्ण राज्य के उत्तम प्रबन्ध के हितार्थ बाई ने अनेक उपाय किए परंतु उनसे प्रजा को किसी प्रकार से भी शांति प्राप्त नहीं हुई । तब अंत को उन्होंने अपने संपूर्ण राज्य के प्रतिष्ठित मनुष्यों को गाँव गाँव से निमंत्रित कर और सब सरदार एवं फौजी अफसरों को एकत्रित करके एक विस्तृत आम दरबार किया और उसमें उन्होंने अपनी प्रजा को चोर लुटेरों तथा डाकुओं से हयविदारक कष्ट सहन करने का वृत्तांत को सब पर प्रगट करते हुए यह दृढ़ प्रतिक्षा करके सच को कह सुनाई कि जो कोई सज्जन मेरी प्राणप्यारी आश्रित प्रजा को इस प्रकार के कष्टों से उत्तम प्रबंध करके उनके सुख और शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत