थीं, वरन् जितने गुण राज़ा में होने चाहिएँ; वे सब उनमें विद्यमान थे। जिस समय अहिल्याबाई राजसिंहासन की शोभा बढ़ा रही थी, उम समय इंदौर एक छोटा सा नगर था। परंतु कुछ काल व्यतीत होने पर उन्हीं के समय में इंदौर एक उत्तम नगर हो गया था। बाई के शासन और मद्व्यवहार के गुणों की कीर्ति सुनकर देशांतरो से अनेक व्यापारी अपना समय और द्रव्य खर्च कर अनेक प्रकार की वस्तुएँ वहाँ लाते और बेचते थे। इन बाहर से आए हुए लोगों पर अहिल्याबाई का विशेष ध्यान रहता था, कि
बाहर से जो मनुष्य अपनी गाँठ से द्रव्य और समय लगा कर यहाँ आया है, उसे उमक व्यय के अनुसार लाभ भी हो, न कि हानि उठानी पड़े। देश की उन्नति और वाणिज्य की वृद्धि का होना ऐसी ही राजनीति पर निर्भर है। बाई के शासन-काल में कोई किसी को दुःख अथवा सकंट नहीं पहुँचा सकता था। यदि कोई बलवान किसी निर्बल पर किसी प्रकार का अत्याचार करता और उसकी सूचना अहिल्याबाई को पहुँचती तो वे अवश्य ही उस दुष्ट को यथोचित दंड देती थीं। वे धन संग्रह करके इतना प्रसन्न नहीं होती थीं जितना न्याय करने से प्रसन्न और संतुष्ट रहती थीं। प्रजा के साथ न्याय से, वरताव कर अपराधी को उचित दंड देने और निरपराध पर दया करके इसको मुक्त करने में वे सदा सुखी और संतुष्ट रहा करती थी।
द्रव्य संग्रह करने के विषय में बाई का यह मत रहता था-