सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ८८ )


सब के विषय में समदृष्टि, प्रसन्नमुख, मीठा स्वभाव, झूठी बड़ाई से घृणा और सब विषय समझने की प्रीति आदि गुणों से परिपूरित थे ।" यदि हम भी न्यायदृष्टि से बाई के विचारों की ओर ध्यान दें तो यही कहना पड़ता है कि बाई में भी उपर्युक्त सबगुण विराजमान थे । तथापि वे सैन्यबल की अपेक्षा आत्मबल का गौरव अधिक ही मानती थीं और इसी कारण अपनी संपत्ति का अधिकांश सैना विभाग अथवा दूसरे किसी विषय में व्यय न करते हुए वे धर्म में व्यय करती थीं । इस विषय में लिखा है कि-"बाई का पत्र व्यवहार सारे भारतवर्ष में फैला हुआ था और यह कार्य उन ब्राह्मणों द्वारा होता था जो बाई के आश्रित और अद्वितीय उदारता के प्रतिनिधि थे । जिस समय होलकर घराने का कोष उनके हाथ में आया तब उन्होंने उसका व्यय धार्मिक कार्यों में ही किया । बाई ने विंध्याचल पर्वत जैसे अनेक दुर्गम स्थानों पर अपरिमित धन व्यय करके बड़ी बड़ी सड़के मंदिर, धर्मशालाएँ, कुएँ, बावड़ियाँ इत्यादि बनवाई थीं । उनका दान केवल उन्हीं के राज्य में निवास करनेवालों के निमित्त नहीं होता था किंतु प्रत्येक तीर्थ स्थान पर पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक होता था । बाई ने कई देवालय हिमालय पर्वत पर, जो सदा बर्फ से ढका रहता है, अमित धन खर्च करके बनवाए थे, और उनका नियमित खर्च चलाने के लिये नियमित रूप से वार्षिक खर्च बाँध दिया था । बाई ने दक्षिण के बहुत से मंदिरो में नित्य गंगा जल से मूर्ति का स्नान कराने के हितार्थ गंगा तथा गंगोत्री के जल की काँवरे भेजवाने का बहुत उत्तम प्रबंध लाखों रुपयों का खर्च करके कर