पड़ा। वह तो मार ही डाला गया पर उसकी लड़की का भी पता नहीं।
रघुनाथ ने अक्खड़पन से कहा - अरे वह महालक्ष्मी ऐसी ही रहीं। उनके लिए जो कुछ न हो जाय थोड़ा है।
रघुनाथ की यह बात मुझे बहुत बुरी लगी। मेरी भाखों के सामने चारों और जेसे होली जलने लगी। ठीक साल भर याद बही व्यापारी प्रयाग आया और मुझे फिर उसी प्रकार जाना पड़ा। होली बीत चुकी थी जब मैं प्रयाग से लौट रहा था उसी कुए पर ठहरना पड़ा । देखा तो एक विकलांंग दरिद्र युवती उसी दालान म पड़ी थी। उसका चलना फिरना असम्भव था। जाम कुएँ पर चढ़ने लगा तो उसने दात निकाल कर हाथ फैला दिया। में पहचान गया-साल भर की घटना सामने आ गई । न जाने क्यों उस दिन मैं प्रतिज्ञा कर बैठा कि आज से होली न खेलूगा।
वह पचास बरस की वीती हुई घटना आज भी प्रत्येक होली में नई होकर सामने आती है। तुम्हारे बड़े भाई गिरधरदास ने मुझ से कई बार होली मनाने का अनुरोध किया पर मैं उनसे सहमत न हो सका और मैं अपने हृदय के इस निर्बल पक्ष पर अभी तक हढ हूँ। समझा न गोपाल! इसीलिए मैं ये दो दिन बनारस के कोलाहल से अलग नाव पर ही बिताता हूँ। -