पृष्ठ:आँधी.djvu/१५

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आँँधी
 

आँँधी को आनन्द कोलाहल से कुछ ही दिनों के लिए सही भर देने का तुम्हारा प्रयन मेरे लिए विशेष सुख का कारण होगा। तुम अवश्य आओ और सब को साथ लेकर आओ । तुम्हारा-श्रीनाथ

पुनश्च -

बंबई से आते हुए सूरन अवश्य लेते आना! यहाँ वैसा नहीं मिलता । सूरन की तरकारी की गरमी म ही तुम लोग चदा की ठंदी हवा झेल सकोगे और साथ साथ अपनी चलती फिरती दूकान का एक बक्स ! जिस पर हम लोगों की बातचीत की परम्परा लगी रहे। श्रीनाथ

दोपहर का भोजन कर लेने के बाद मैं थोड़ी देर अवश्य लेटता हूँ। कोई पूछता है तो कह देता हूँ कि यह निद्रा नहीं भाई तद्रा है। स्वास्थ्य को मैं उसे अपने आराम से चलने देता हूँ। चिकिसकों से सलाह पूछ कर उसमें छेड़-छाड़ करना मुझे ठीक नहीं जँचता । सच बात तो यह है कि मुझे वर्तमान युग की चिकित्सा मे वैसा ही विश्वास है जैसे पाश्चात्य पुरातत्त्वज्ञों की खोज पर। जैसे वे साची और अमरावती के स्तम्भ तथा शिल्प के चिह्नों में वस्त्र पहनी हुई मूर्तियों को देख कर ग्रीक शिल्प-कला का आभास पा जाते हैं और कल्पना कर बैठते हैं कि भारतीय बौद्ध-कला ऐसी हो ही नहीं सकती क्योंकि वे कपड़ा पहनना जानते ही न थे। फिर चाहे आप त्रिपिटक से ही प्रमाण क्यों न दें कि बिना अतर्वासक चीवर इत्यादि के भारत का कोई मितु भी नहीं रहता था पर वे कब माननेवाले। वैसे ही चिकित्सक के पास सिर में दर्द होने की दवा खोजने गये कि वह पेट से उसका सम्बध जोड़ कर कोई रेचक औषधि दे ही देगा। बेचारा कभी न सोचेगा कि कोई गंभीर