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आँँधी

का रंग उड़ गया । व घबराकर कुछ श्री भाषा अपनी क नी लगी। युवक उठ खड़ा हुआ।मैं कुछ न समझ सका।वह चला गया।अब लैला ने मुस्कराते हुए बेग मे से वही पत्र निकाला।मैंने कहा-इसे तो मैं पढ चुका हूँ!

इसका मतलब!

वह तुम्हारी चारयारी खरीनने फिर आवेगा।यही इसमे लिखा है- मैंने कहा।

बस।इतना ही?

और भी कुछ है।

क्या बाबू?

और जो उसने लिखा है वह मैं नहीं कह सकता-

क्यों बाबू?क्यों न कह सकोगे?बोलो।

लैला को वाणी मे पुचकार दुलार झिड़की और आज्ञा थी।

वह सब बात मैं नहीं

बीच मे ही बात काट कर उसने कहा- नहीं क्यों?तुम जानते हो नहीं बोलोगे?

उसने लिखा है मैं तुमको यार करता हूँ।

लिखा है बाबू!-लैला की आखों में स्वर्ग हसने लगा!वह फुरती से पन मोड़कर रखती हुई हसने लगी।मैंने अपने मन में कहा-अब यह पूछेगी वह कब आवेगा?कहा मिलेगा-किंतु लैला ने ये सब कुछ नहीं पूछा।वह सीढियों पर श्रद्धशयनावस्था में जैसे कोई सुंंदर सपना देखती हुई मुस्करा रही थी।युवक दौड़ता हुआ आया उसने अपनी भाषा में कुछ घबरा कर कहा-पर लैला लेटे ही लेटे कुछ बोली।युवक भी बैठ गया।लैला ने मेरी ओर देखकर कहा- तो बाबू!वह आयेगा!मेरी चारयारी खरीदेगा।गुल से भी कह दो।