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पृष्ठ:आँधी.djvu/३३

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२६
आँँधी

मैंने कहा-वह यहीं पा गया है।उसके बाल बचे सब साथ !हैं लैला तुम चलोगी?

वह एक बार सिर से पैर तक काप उठी!और मैं भी घबरा गया। मेरे मन में नई आशंका हुई ।आज मैं क्या दूसरी भूल करने जा रहा हूँ?उसने सम्हल कर कहा-हा चलूँगी बाबू!-मैंने गहरी दृष्टि से उसके मह की ओर देखा तो अधड़ नहीं कि तु एक शीतल मलय का याकुल झोका उसकी धुंधराली लटों के साथ खेल रहा था । मैंने कहा-अच्छा मेरे पीछे-पीछे चली आयो।

मैं चला और वह मेरे पीछे थी।जब पाठशाला के पास पहुँचा तो मुझे हारमोनियम का स्वर और मधुर बालाप सुनाई पड़ा।मैं ठिठक कर सुनने लगा-रमणी करठ की मधुर ध्वनि!मैंने देखा कि लैला की भी अखि उस सगीत के नशे म मतवाली हो चली ह । उधर देखता हूँ तो कमलो को गोद में लिये प्रज्ञासारथि भी झूम रहे हैं। अपने कमरे म मालती छोटे से सफरी बाजे पर पीलू गा रही है और अच्छी तरह गा रही है। रामेश्वर लेटा हुआ उसके मुह की ओर देख रहा है। पूर्णतुसि !प्रसन्नता की माधुरी दोनों के मह पर खेल रही है ! पास ही रजन और मिना बैठे हुए अपने माता और पिता को देख रहे हैं ! हम लोगों के आने की बात कौन जानता है। मैंने एक क्षण के लिए अपने को कोसा इतने सुन्दर संसार में कलह की ज्वाला जला कर मैं तमाशा देखने चला था!हाय रे-मेरा कुतूहल ! और लक्षा स्तध अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से एक टक न जाने क्या देख रही थी। मैं देखता था कि कमलो प्रज्ञासारथि की गोद से धीर से खिसक पड़ी और बिल्ली की तरह पैर दयाती हुई अपनी माँ की पीठ पर हँसती हुई गिर पड़ी और बोली-मा और गाना रुक गया। कमलो के साथ मिला और रजन भी इस पड़े। रामेश्वर ने कहा--कमलो तू बली पाजी है ले । बापाजी-लाल-कह कर कमलो ने अपनी नन्ही सी उँगली उठा कर हम लोगों की ओर संकेत किया । रामेश्वर तो उठकर बैठ गये । मालती