निवेदन
(प्रथम संस्करण से)
हिन्दी साहित्य प्रेमियों को प्रसाद जी का परिचय देने की आवश्यकता अब नहीं है। वह अपनी कृतियों के कारण आशातीत यशार्जन कर चुके हैं। कविता कहानी उपन्यास नाटक और थोड़े बहुत अन्वेषणात्मक लेखों के रूप में जो कुछ उन्होंने अपनी मातृ भाषा के भण्डार में अर्पित किया है वह हिन्दी साहित्य के गर्व की वस्तु है। हमारे स्थायी साहित्य निधि में उन्होंनें ही सबसे अधिक विभूति भरी है। आज जहां हमार अर्वाचीन साहिय में भारतीय आत्मा के प्रत्यक्ष प्रतिकूल पाश्चात्य कला अपना घर बनाती चली जा रही है वहां उन्होंने अपन प्रौढ़ प्रतिभा बल से शुद्ध भारतीय प्राण भरने की चेष्टा की है किन्तु ऐसा करके भी वे आदर्शवाद के पीछे––साहित्य के मूल को भूल कर––दौड़ते नहीं दिखलाई पड़ते। उनके पात्र अपनी मनुष्यता और संस्कृति के कारण कुछ ऊँचे दिखलाई पड़ते हैं। परन्तु इसमें निर्माण नहीं उनका स्वाभाविक गठन है। साहित्य जिस तीव्र अनुभति का भूखा है प्रसाद जी में उसकी अपने हदय के बड़े कोमल उपकरणों से तृप्ति की है।
आंधी उनकी सब से नवीन गल्प रचना है। इसके साथ दस और श्रेष्ठ कहानियां दी गई है जो समय-समय पर प्रकाशित भी हो चुकी हैं। प्रसाद जी कहानी साहित्य में अपना एक विशेष स्थान रखते हैं। उन्होंने केवल वस्तु का प्रसार नहीं किया अपितु एक विशेष मनोभाव कहीं––मानव चरित्र की एक विशेष