सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आँधी.djvu/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
आँँधी
३५
 
                  आंधी

३५ मानो पाठशाला के चारो ओर लिपट रही थी। सहसा एक भीषण अमिट हुई। अब मैं टार्च लिये बाहर गया था।

आंधी रुक गई थी। मैंने देखा कि पीपल की बड़ी सी डाल पलटी पड़ी है और लला उसके नीचे दी हुई अपनी भावनाओं की सीमा पार कर चुकी है।

मैं अब भी चन्दा तट के बौद्ध पाठशाला का अवैतनिक अध्यक्ष हूँ। प्रज्ञासारथि के नाम को कोसता हुआ दिन बिताता हूँ। कोई उपाय नहीं । वहीं जैसे मेरे जीवन का केंद्र हैं।

आज भी मरे हुए म आधी चला करती है और उसमें लैला का मुख बिजली की तरह कांधा करता है।