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पृष्ठ:आँधी.djvu/४८

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मधुआ
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भारी बनना पड़ेगा क्या ? दुर्भाग्य | जिसे मैंने कभी सोचा भी न था। मेरी इतनी माया-ममता--जिस पर आज तक केवल बोतल का ही पूरा अधिकार था-इस का पक्ष क्यों लेने लगी ? इस छोटे से पाजी ने मेरे जीवन के लिए कौन सा इन्द्रजाल रचने का बीड़ा उठाया है । तब क्या करू १ कोई काम करू ? केसे दोनों का पेट चलेगा! नहीं भगा दूंगा' इसे— आँँख तो खोले।

बालक अँगड़ाई ले रहा था। वह उठ बैठा । शराबी ने कहा- उठ कुछ खा ले। अभी रात का बचा हुआ है और अपनी राह देख ।तेरा नाम क्या है रे ?

बालक ने सहज हँसी हस कर कहा-मधुश्रा । भला हाथ मह भी न धोऊँ । खाने लगें । और जाऊँगा कहा ?

आह ! कहा बताऊ इसे कि चला जाय ! कह दूँ कि भाड़ में जा कितु वह आज तक दुख की भनी मे जलता ही तो रहा है। तो यह चुपचाप घर से झमाकर सोचता हुया निकना-ले पाजी अब यहा लौटगा ही नहीं । तू ही इस कोठरी में रह !

शराबी घर से निकला। गोमती किनारे पहुंचने पर उसे स्मरण हुश्रा कि वह कितनी ही बातें सोचता आ रहा था पर कुछ भी सोच न सका। हाथ मुँह धोने में लगा ।। उजली धूप निकल आई थी। वह चुपचाप गोमती की धारा को देख रहा था। वूप की गरमी से सुखी होकर वह चिन्ता मुलाने का प्रयन कर रहा था कि किसी ने पुकारा-

भले आदमी रहे कहाँ १ सालों पर दिखाई पड़े। तुमको खोजते खोजते मैं थक गया। शराबी ने चौंक कर देखा। वह कोई जान पहचान का तो मालूम होता था पर कौन है यह ठीक ठीक न जान सका।

उसने फिर कहा-तुम्हीं से कह रहे हैं । सुनते हो उठा ले जाओ अपनी सान धरने की कल नहीं तो सड़क पर फेंक दूंगा । एक ही तो